पटना : बिहार की प्रतिष्ठित साहित्यकार पद्मश्री डा. उषा किरण खान का आज रविवार, दिनांक 11 फरवरी 2024, को स्वर्गवास हो गया। वो पिछले 20-22 दिनों से पटना के मेदांता अस्पताल में मृत्यु से संघर्ष कर रही थीं। उनके निधन के साथ ही बिहार का साहित्यिक पटल शून्य और शिथिल सा हो गया है। वो लाखों के हृदय की प्रिय और प्रेरणा थी।
'परिचय इतना इतिहास यही, उमड़ी कल थी बह आज चली’... अपने फेसबुक पेज पर अपना यही परिचय दिया था उषा जी ने।
मिथिला की पुत्री उषा किरण जी आजीवन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बिहार के लिए गौरव अर्जित करती रहीं। हिंदी की तो वो अनवरत सेविका थी हीं साथ ही मातृभाषा मैथिली को समर्पित उनका योगदान कभी नही भूला जा सकता।
2011 में उन्होंने अपने मैथिली उपन्यास “भामती : एक अविस्मरणीय प्रेमकथा” के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार अर्जित कर मैथिली भाषा को उसका वांछित यश प्रदान किया।
उषा जी सुप्रसिद्ध साहित्यकार नागार्जुन को अपना आदर्श और गुरु मानती थी । 2012 में उन्हें 'सिरजनहार' उपन्यास के लिए कुसुमांजलि साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया। बिहार में ऐसा कोई साहित्य सेवक, लेखक या नाटककार नहीं है जिस पर उषा जी ने अपना स्नेह और आशीर्वाद नहीं लुटाया हो। अपने पीछे वो तीन पुत्रियों और एक पुत्र के साथ नाति-पोतों सहित एक भरा - पूरा परिवार छोड़ गईं हैं।
अनेकानेक साहित्य पुरस्कारों से विभूषित श्रीमती उषा किरण खान 2015 में पद्मश्री से सम्मानित की गई। अपने द्वारा रचित कहानी, उपन्यास,नाटकों का जो अनमोल भंडार वो साहित्य को समर्पित कर आज विदा हो गई हैं उन सबके लिए वह सदैव अमर रहेंगी।
इस महान साहित्यकार एवं व्यक्तित्व के अवसान पर जनता और जानो जंक्शन श्रद्धापूर्वक नतमस्तक है।