'बेशर्म रंग' क्या भगवा पर हमला है?
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...और भी मुद्दे हैं ज़माने में पठान फिल्म के सिवा ।जी हां मुझे पठान फिल्म के हिट या फ्लॉप पर कोई चर्चा नहीं करनी ।हर फिल्म अपनी यात्रा खुद तय करती है ।मैं तो बस यह चाहती हूं कि अगर हम देखना चाहे तो कोई रोके ना और ना देखना चाहे तो कोई टोके ना कि भाई तुमने पठान नहीं देखी? मैं आज के हालात पर खरी - खरी बात करना चाहती हूं ।
आपको याद होगा कि फिल्मों के बहिष्कार का सिलसिला सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु से उपजे जन आक्रोश के कारण शुरू हुआ था जिसने बॉलीवुड गैंग की जड़े हिला दी। कहे तो रुला मारा…। दूसरी तरफ बॉलीवुड के वामपंथी प्रभाव और सोच के विरुद्ध एक सनातनी आंदोलन भी शुरू हुआ जो हिंदू धर्म के विरुद्ध चल रहे सिनेमा के षड्यंत्र को उजागर करने लगा। बिना किसी राजनीतिक या ऑफिशियल सपोर्ट के भी सिर्फ सोशल मीडिया के दम पर यह आंदोलन 3 साल तक अत्यंत प्रभावकारी रहा । इसका सबूत हम देख सकते हैं कि रणबीर कपूर को कम बैक के लिए ब्रह्मास्त्र में हिंदुत्व की शरण लेनी पड़ी और रोमांटिक गीत में भी देवा - देवा ,नमो नमः घुसेड़ना पड़ा। इतना ही नहीं फिल्म प्रमोशन के लिए रणवीर -आलिया कभी कुंभ मेले का तो कभी काशी बाबा विश्वनाथ के चक्कर लगाते नजर आए।और शाहरुख खान को भी बाजीगर या डॉन के चरित्र की बजाय पठान में देशभक्ति का चोला पहनना ही पड़ा। मैं दावे के साथ कह सकती हूं यह दोनों फिल्में सिर्फ इसलिए हिट हो पाई क्योंकि इन्होंने जो हिंदू धर्म और देश प्रेम का विषय उठाया उसे भारतीय दर्शक नकार नहीं सके।
देखा जाए तो एक तरफ बॉलीवुड बहिष्कार आंदोलन भी कमजोर हो चुका है क्योंकि एक तो सुशांत को लेकर सीबीआई ने भी जनता की भावनाओं का कोई पक्ष नहीं लिया और लोग लड़ते-लड़ते थक गए और दूसरी तरफ एक समय के बाद हिंदुत्व आंदोलन बॉलीवुड को लेकर बिल्कुल भटक गया.. दिशाहीन हो गया। अब फिल्म के विषय पर नहीं बल्कि फिल्म कलाकारों पर व्यक्तिगत हमला आरंभ हो गया और बेसिर पैर की बातों पर हिंदुत्व की भावनाओं को भड़काने की कोशिश होने लगी जैसे नारंगी रंग की दीपिका की बिकनी भगवा हो गई और अतिरिक्त समझ रखने वालों ने प्रचार किया कि भगवा को ही बेशर्म रंग कहा गया है। जबकि मैं समझती हूं कि कोई भी हिंदी या उर्दू की समझ रखने वाला poetry को समझने वाला इसका सही अर्थ बता सकता है। जैसे मैंने अब तक पठान फिल्म नहीं देखी है पर बता सकती हूं कि गाने का अर्थ क्या है। बोल हैं - नशा चढ़ा जो शरीफी का उतार फेंका है ,बेशर्म रंग कहां देखा दुनिया वालों ने ।' गीत का भाव साफ है कि नायिका इश्क़ को पाने के लिए इतनी व्याकुल हो उठती है कि वह शराफत का चोला उतार कर ,बिकिनी धारण कर नायक को रिझाने की कोशिश करती है और अपने चरित्र का वह बेशर्म रंग यानी पहलू नायक को दिखाती है इसका मतलब यहां बेशर्म रंग का कलर से कोई लेना-देना ही नहीं है। और किसने कहा कि हिंदू धर्म में सिर्फ भगवा की महिमा है? भगवती की साधना करने वाले लाल वस्त्र पहनते हैं क्योंकि मां दुर्गा लाल साड़ी पहनती हैं ,सरस्वती श्वेत साड़ी पहनती हैं ,श्री कृष्ण पीताम्बर यानी पीला धारण करते हैं जबकि शरीर श्याम रंग का है । किस - किस रंग की बिकनी पर पहरा बिठाएंगे ?
ये गाना पसंद ना आने के कुछ और valid reasons हो सकते हैं जैसे - दीपिका को इस उम्र में नग्न प्रदर्शन की सीमा लांघने की या शाहरुख को बुढ़ापे में नकली सिक्स पैक दिखाने की क्या मजबूरी थी ?
मेरा विरोध गीतकार से है कि गाने में ' शरीफी' शब्द का प्रयोग कर उर्दू की टांग तोड़ने का अधिकार किसने दिया जबकि सही शब्द 'शराफ़त' होता है और अगर शरीफी की बजाय शराफ़त लिखा होता तो भी rhyming के लिए कोई challenge नही था।
अंत में सनातन के सच्चे सिपाहियों से खरी-खरी कहना चाहती हूं कि यदि हिंदुत्व पर प्रहार करने वालों को रोकना है तो बॉलीवुड का उचित तथ्यो के साथ विरोध करें तभी लोग साथ देंगे। पहले उन विश्वविद्यालयों के खिलाफ उतरे जहां मां दुर्गा को वेश्या बताकर पोस्टर लगाए जाते हैं ,जहां राम, सीता ,ब्रह्मा, विष्णु, शिव के चरित्र को जानबूझकर ग़लत प्रस्तुत करते हैं ,जहां जातिगत भावनाओं को भड़का कर हिंदू एकता को तोड़ने की कोशिश होती है क्योंकि एक बात तो पक्की है कि सनातन धर्म का रंग इतना कच्चा नहीं कि किसी भी हीरो के नाम से उड़ जाए …इतना सस्ता नहीं कि किसी भी हीरोइन की बिकिनी के नाम पर बिक जाए। धन्यवाद।