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बिहार दिवस पर एक बिहारी की कलम से.. | Bihar Diwas

बिहारी या बिहारियत की पहचान कई बार प्रदूषित हुई होगी लेकिन वास्तव में भारतीयता ही बिहार की मूल पहचान है।

Dr Pooja Varma

बिहारी या बिहारियत की पहचान कई बार प्रदूषित हुई होगी लेकिन वास्तव में भारतीयता ही बिहार की मूल पहचान है। बिहार उन चंद राज्यों में से एक है जो भाषा, संस्कृति, परंपरा और आत्मा से भारतीय है। चाणक्य और आर्यभट्ट की यह भूमि अपने ज्ञान पर इतराए तो गलत क्या है..? सम्राट चंद्रगुप्त और अशोक की यह भूमि अपनी शक्ति पर इतराए तो गलत क्या है..? महावीर और बुद्ध की यह भूमि अपने तप और त्याग पर इतराए तो गलत क्या है..?

पर बिहार के साथ बहुत ग़लत हुआ.. होता ही रहा है.. आजादी के बाद से ही..। इसके प्राकृतिक स्रोतों का दोहन और मानव स्रोतों का शोषण किया जाता रहा। दक्षिण बिहार (अब झारखंड) के खनिजों और उत्तर बिहार के मजदूरों से पूरे भारत के कारखाने चलते रहे.. लेकिन बिहार एक अदद बड़े कारखाने के लिए तरसता रहा जो छोटे- मोटे सीमेंट,खाद,चीनी के कारखाने थे, वे भी बंद होते गए.. या फिर बिहार से अलग ही कर दिए गए।

लेकिन जैसा कि हमारे ऋषि- मुनि कह गए हैं कि विद्या वह चीज है जिसे न चोर चुरा सकता है ना राजा ही छीन सकता है। बिहार के मां-बाप ने अपने बच्चों को विद्या हासिल करने के लिए दूसरे राज्यों में भेजना शुरू कर दिया और इसके लिए ख़ुद अपना पेट काटकर जीते रहे..। यह बिहार है जहां ज्ञान को सबसे ऊपर रखा जाता है और इसीलिए UPSC में बिहारी का वर्चस्व हमेशा दिखता रहा है। बिहार में अपराधियों की संख्या गिनने वाले भूल जाते हैं कि बिहारियों की सबसे बड़ी संख्या भारतीय ब्यूराक्रेट में है।

बिहार आज भी अपने अस्तित्व और सम्मान की लड़ाई लड़ रहा है। यह लड़ाई यहां के लोगों की है और हमें शायद इसकी परवाह भी नहीं कि शासन या प्रशासन मेरे सम्मान के लिए क्या कर रहा है। हम बिहारी हैं और हम अपना सम्मान खुद हासिल करना जानते हैं। हम अकेले लड़ना जानते हैं। हम हर उस ऊंचाई पर जाकर अपना झंडा खुद फहरा देते हैं जिसे देखकर सारा भारत विस्मित रह जाता है कि आखिर बिना सहारे के यह ऊपर चढ़ा कैसे..! शायद यही एक बिहारी की ताक़त है कि हमें मालूम है कि हमें सहारा देने वाला कोई नहीं। जो करना है स्वयं के बूते पर ही करना है और आगे निकलना है।

बिहार की बिहारियत को जो समझते हैं वह जानते हैं कि यहां हर अनजान महिला या पुरुष बाबा, दादी, चाचा, मौसी, दीदी, भैया के नाम से संबोधित किए जाते हैं..यहां बच्चे बीमार मां-बाप की सेवा के लिए नौकरियां छोड़कर चले आते हैं.. बिहारी रोटी या मिठाई बांट कर खाते हैं.. और कभी मुसीबत में आवाज दो.. तो दौड़े चले आते हैं। यही है इस बिहार की बिहारियत। बिहारियत ज़िंदाबाद है इसलिए बिहार जिंदाबाद रहेगा…।

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