उन यादों की नींदो में
बस्ती है रातें ,
उन यादों की महफ़िल में
बस्ती मुलाक़ातें ।
मन के उस उर्जा का
पर्दा खोले राही ,
पर जान पाए वही
जो बनता हैं सहाई ।
भिड़ते भिड़ाते
है आँखें चुराते ,
उन तरंगों की पूर्ति
की ख्वाइश निभानीं
लगती जो उबाऊँ
वही है कहानी हमारी ।
— देवांशी टुवानी
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