पटना (बिहार): मंगलवार 28 मई की शाम पटना के कलाप्रेमी दर्शकों के लिए एक सुखद शाम रही जब प्रेमचंद रंगशाला के प्रेक्षागृह में 'कला जागरण' नाट्य संस्था द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन की अकीर्तित नायिका दुर्गा भाभी के जीवन पर आधारित नाटक "मैं यहीं हूं" देखने को मिला । जिस इतिहास में भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद को उनका उचित सम्मान न मिला हो वहां एक क्रांतिकारी स्त्री के योगदान को मिटा दिया जाना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है। परन्तु साहित्यकार,लेखक डॉ. किशोर सिन्हा की लेखनी की दुर्गा भाभी के पूरे जीवन और योगदान को उसका उचित सम्मान देने की ईमानदार कोशिश इस नाटक को ऐतिहासिक बना देती है। निर्देशक सुमन कुमार अपने शिल्प के पारंगत हैं और उन्होंने नाटक को जीवन्त रखने में सफलता पाई।
यह नाटक दर्शाता है कि क्रांतिकारी वीरांगना दुर्गा ने भगत सिंह,राजगुरु,सुखदेव, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे क्रांतिकारियों के साथ किस तरह कंधे से कंधा मिला कर सहयोग किया और चूड़ियां उतार कर शस्त्र थाम लिए।
अभिनय पक्ष का सबसे सुखद अनुभव था दुर्गा भाभी की भूमिका में भावना वर्मा का सशक्त अभिनय । 29 वर्षों बाद पटना के रंगमंच पर उनका पुनरागमन बड़ा ही प्रभावशाली सिद्ध हुआ। अन्य भूमिकाओं में भी कई कलाकारों ने अच्छा काम किया - आराध्या सिन्हा, अर्चना एंजेल, कुमार सौरव, नेहा कुमारी इत्यादि। लेखक किशोर सिन्हा ने भी अपनी भूमिका को बड़े स्वाभाविक ढंग से जिया। तीन विभिन्न किरदारों में सलमान मुज़फ्फर ने काफी प्रभावित किया और तीनों भूमिकाओं के अलग चरित्र को अच्छी तरह अभिनीत किया। भगत सिंह के किरदार की संवाद अदायगी में बिहारीपन और उच्चारण दोष खटकता रहा और चंद्रशेखर आज़ाद बिना वजह लगातार चीखकर लाउड डायलॉग डेलीवरी से बचते तो अच्छा होता।
कहानी में मंच सज्जा, प्रकाश व्यवस्था सभी अनुकूल लगे। स्वतंत्रता आंदोलन में दुर्गा भाभी की सक्रिय भूमिका को ड्रामा के तौर पर देखना पटना के दर्शकों के लिए सुखद अनुभूति रही।